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हिन्दू मन्दिरों में अलग अलग नाद उत्पन्न करने वाले घन्टों की वैज्ञानिकता

  • Vinai Srivastava
  • Mar 26, 2022
  • 5 min read

आप सबने ध्यान दिया होगा कि ईश्वर के मन्दिरों में , विशेषकर हिन्दू मन्दिरों में विभिन्न प्रकार के कर्ण प्रिय ध्वनि( संगीत की भाषा में जिसे नाद कहते है) उत्पन्न करते घन्टे टंगे रहते हैं। इन घन्टों की ध्वनियाँ ही मन्दिर का वातावरण निर्मित करती हैं। मुख्य देवता का सबसे बड़ा घन्टा मन्दिर के मुख्य द्वार पर टांगा जाता है। उसे बजाकर ही मन्दिर में लोग प्रवेश करते हैं। उसका तात्पर्य जागृत देवता,जिसकी प्राण प्रतिष्ठा की जा चुकी है,को यह बताना है कि कोई भक्त उनके प्रागंण मे प्रवेश कर रहा है। नाद और प्राण शक्ति में एक आध्यात्मिक सामंजस्य है। एक विशिष्ट ध्वनि शरीर के विशिष्ट अंग को प्रभावित करती है,क्योंकि प्रत्येक अंग शरीर का प्राणमय है उसकी अपनी विशिष्ट आवृति (frequency) होती है। पेट की आवृति ह्दय व फेफड़ों से अलग है। ह्रदय की आवृति फ़ेफड़ों से नहीं मिलती। इन सभी का किसी न किसी ध्वनि से आन्दोलित होना स्वाभाविक है। एक मैं अपना स्वयं का अनुभव उद्धरण के रूप में लिख रहा हूँ।

मैं उन दिनों गोरखपुर विश्वविद्यालय में गणित विषय का प्रवक्ता था। ब्लैक बोर्ड पर चॉक से लिखना ही अध्यापन का माध्यम था। बी०एस-सी० की कक्षा थी और मैं ब्लैक बोर्ड पर चॉक से लिख कर गणित के किसी प्रश्न का हल विद्यार्थियों को समझा रहा था। सामने बैठा एक छात्र बराबर अपने मुँह को रगड़ रहा था। मैने पढ़ाना रोककर उससे प्रश्न किया ,’यह तुम मुँह क्यों रगड़ रहे हो जब भी मैं ब्लैक बोर्ड पर लिखता हूँ। ‘

उसका जवाब सुनकर पूरा क्लास ठहाकों में गूँज उठा।

वह बोला,’’सर! जब आप ब्लैक बोर्ड पर लिखते हैं चूँ चूँ की आवाज़ होती है। इससे मेरे दाँतों मे गुदगुदी होने लगती है। इसलिए मैं मुँह रगड़ता हूँ।’’

‘’दाँतों में गुदगुदी?’’मैंने उत्सुकतावश पूरी क्लास से पूछा,’’ भई! यह बीमारी किसी और को भी है क्या? कृपया हाथ खड़ा करें।’’

पूरा क्लास हँसते हँसते लोटपोट हो गया।

बात आई गई और होगई।

आज मै गंभीरता से सोचता हूँ कि वह छात्र सत्य कह रहा था। प्रत्येक ध्वनि के कम्पन का शरीर के अन्यान्य अंगो पर प्रभाव पड़ता है। वे अान्दोलित हो उठते है। वैज्ञानिक भाषा में कहे तो ध्वनि की आवृति (frequency) और अंग विशेष की आवृति एक होने पर कम्पन का amplitude बहुत बढ़ जाता है जिसे synchronisation कहते है। और यह resonanceभी कहलाता है।

कभी कभी भौतिक शास्त्र की प्रारम्भिक कक्षाओं में यह प्रश्न पूछा जाता है कि :

‘किसी भी पुल पर सेनाओं को क्यों आदेश दिया जाता है कि वे क़दम से क़दम मिला कर न चलें।’

इसका उत्तर भी वैज्ञानिक भाषा में यह है कि सारे क़दमों का सम्मिलित कम्पन कहीं पुल के कम्पन के साथ synchronise न कर जाए ऐसे कम्पन में पुल कमजोर होसकता है क्योंकि पुल भी कम्पित होगा ज़्यादा दोलन (amplitude) से। सितार के तार विशेष तनाव पर एक निश्चित आवृति की ध्वनि उत्पन्न करते है। इसी तरह हारमोनियम य पियानो के रीड भी एक विशेष आवृत्ति कीध्वनि के लिए synchronise किया जाता है।

ध्वनि की तीव्रता अलग अलग माध्यम मे विभिन्न होती है। जल में इसका रेंज बहुत होता है। डाल्फिन की आवाज़ (19000Hertz)2कि०मी० दूर तक जल मे विस्तीर्ण होती है। जल में य किसी तरल पदार्थ में ध्वनिके कम्पन द्वारा विभिन्न पैटर्न बनाते है। चूँकि हमारे शरीर के विभिन्न अंगो मे जल की मात्रा विभिन्न है ध्वनि का प्रभाव भी अलग पड़ता है अलग अलग अंगो पर। मन्दिर में विभिन्न कम्पन करने वाले घन्टों की आवाज़ किसी न किसी अंग को प्रभावित कर उनमें स्थित विषैले अवांछनीय तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में रक्त की सहायता कर सकते हैं शरीर धीरे धीरे स्वस्थ हो सकता है। अधिकतर मन्दिर के पास रहने वाले ज़्यादा स्वस्थ होते है। मन्दिर मे जाकर थोड़ा आश्वस्त (relax) होकर घन्टों की ध्वनि ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए, बजाना भी चाहिए। यह सिर्फ़ बच्चों का खेल न होकर शारीरिक , मानसिक व अध्यात्मिक स्वास्थ्य हेतु एक वैज्ञानिक क़दम है। प्रत्येक आरती में घन्टा, शंख आदि बजाने के पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार है कि वे सब एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करते है। यह हमारे ऋषियों /महाऋषियों को भलीभाँति ज्ञात थी।

आजकल विभिन्न आवृत्ति (frequency) वाले ध्वनि के माध्यमसे तन व मन को स्वस्थ करने(heal) करने की एक वैकल्पिक चिकित्सा भी प्रचलित हो चली है।तिब्बत मे लामा लोग ध्वनि चिकित्सा विभिन्न धातु के प्यालों से उत्पन्न ध्वनि से किया करते हैं आजभी।

कनाडा के डा० ली बार्टेल ने जैविक कोशिकाओं पर ध्वनि के चिकित्सीय प्रभाव पर शोध किया है और बताया है 40हर्ट्ज की ध्वनि से अलज़ाइमर, डिमेन्शिया , रक्त का अनुपयुक्त प्रवाह किसी अंग में,नींद न आना जैसी तमाम बीमारियों को ठीक किया जा सकता है।

दुनिया के विभिन्न ध्वनि चिकित्सक तरह तरह के उपकरण प्रयोग करने लगे हैं जैसे -

1)Abulo Overtune flute

2)Ocean Drum

3)Crystal Harp

4)Koshi Chimes

5)Rain Sticks

6)African Tongue Drum

7)Metal Singing Bowl

8)Crystal Pyramids

9)Tuning Forks

10)Crystal Bowl

उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में मैं स्वयं उत्सुक था कि कोई अवसर ऐसा मुझे प्राप्त हो कि मैं स्वयं इस विलक्षण तकनीक का अनुभव प्राप्त कर सकूँ। ऐसा अवसर शीघ्र ही मुझे प्राप्त हुआ जब श्री ब्रह्म प्रकाश गौड़ के सौजन्य से मुझे अॉन लाइन उनके ‘Sound Healing Intensive course ‘को ज्वाइन करने का अवसर मिला। इसके पहले भी मै श्री ब्रह्म प्रकाश गौड़ के कई आध्यात्मिक सत्र यूट्यूब और अॉन लाइन सत्र में सम्मिलित हुआ था। चूँकि मुझे अध्यात्म मे शुरू से ही रूचि थी , मुझे उनके ध्यान सत्रों में बहुत कुछ सीखने को, अनुभव करने को मिला। यह सत्र पहले 10दिनों का था बाद में उन्होंने प्रतिभागियों की इच्छा देखते हुए 10 दिनों के लिए और बढ़ा दिया। इन सत्रों में ‘साउन्ड हीलिंग’के अलावा प्रतिभागियों को ‘Soul Healing’ और Meditation Technique ‘ भी कराया गया। सभी कुछ अॉन लाइन हुआ। बड़े विलक्षण अनुभव हुए 30 से अधिक प्रतिभागियों को। कुछ निम्न है-

  • किसी का कमर का दर्द, किसी के घुटने के दर्द, किसी के कन्धे के दर्द में आश्चर्यजनक रूप से फ़ायदा हुआ

  • प्राय: सभी को शारीरिक व मानसिक शान्ति का अनुभव हुआ

  • सभी को गहरी निद्रा और ताजगी का अनुभव हुआ

  • कुछ लोगों में ऐसी स्मृतियाँ उभर कर कर मानस पटल पर आ गई जिनसे वे सर्वथा अपरिचित थे।कदाचित् यह उनके पूर्व जन्म की स्मृतियाँ थी जो उनके cell memory में स्थित थी।


( आगामी लेख में Masaru Emoto और गुरूजी प्रेम निर्मल द्वारा इस सम्बन्ध किए जा रहे शोधों पर चर्चा करेंगे)




In my view every moment in this world can provide its fullest feeling only when one experiences the moment whole heartedly i.e. with concentration & dedication. One can learn swimming after going fully into the water and being there as per swimming instruction. I took a dive whole heartedly into the ‘sound healing sessions’ conducted by Shri Brahma Prakash Gaur & had very unique feelings. No one can express fully one’s feelings exactly in words. There is also a point that in a similar situation different persons may have different feelings. In short one can say it was good feeling or very good feeling or fantastic feeling. One can speak out various body sensations or mental sensations. After various sessions of ‘ sound healing ‘ I can recount my sensations as follows-

  • whole body felt very heavy initially including some heaviness in head or different parts of the body but after a slight sleep /meditation (which used to be very deep sleep or may be said a deep meditation), it was very relaxing, refreshing , light and joyful uniquely. Some tips given by Shri Gaur were excellent to calm down the body parts in a miraculous way.

  • Spinal breathing with prana moving down & up with breathing in & breathing out was felt

  • Movement of Aagya Chakra moving in & moving out was felt with breathing in & breathing out was felt

  • While sound of bells felt within Center of skull, the sound of heart vibration and sound of breathing was also felt there itself.

  • On the whole the ‘sound healing ‘ session was a great wonderful experience for my body, mind & spiritual practices.

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