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सत्य क्या है?

  • Vinai Srivastava
  • Apr 9, 2022
  • 3 min read

अभी कुछ दिन पूर्व मेरे एक प्रिय भतीजे ने इन्स्टाग्राम पर आई एक पोस्ट का सन्दर्भ देते हुए पूछा, ‘ताऊ जी! क्या यह सत्य है?’

मैं बड़ी दुविधा में पड़ गया। मै किसी भी बात को कैसे बताऊँ कि यह सत्य है। सबसे पहले तो यह समझें कि ‘सत्य है क्या ?’ यदि हम यह कहें कि ‘ जो न बदले वह सत्य है और संसार में खोजने चलें क्या है जो बदलता नहीं है।’

‘आज ‘ तो पल प्रति पल बदल रहा है और धीरे धीरे बीते हुए ‘ कल’ में बदल रहा है।क्या बीता हुआ कल सचमुच नहीं बदलता? बीते हुए कल को क्या प्रत्येक प्राणी एक रूप मे देखता है। कोई कहेगा विश्वयुद्ध सही था कोई कहेगा हिटलर सही था। कोई कहेगा नहीं। कोई कहेगा मन्दिर मस्जिद गिराना सही था कोई कहेगा नहीं। कहने का अर्थ यह कि इतिहास को किन नज़रों से, किस पृष्ठभूमि से मन देख रहा है इस पर निर्भर करता है। निगाहें बदलती है अर्थात मन बदलता है और इतिहास का रूप बदलता है। यदि बीते हुए कल को सिर्फ़ प्रकृति के भरोसे छोड़ा जाय बीते हुए कल को काफ़ी समय तक आँका जा सकता है कि कल क्या रहा होगा। सारी डिटेक्टिव एजेन्सी जो कहती हैं कि ‘ हम सत्य जानना चाहते हैं’, वह किसी मन की बातों पर कम वस्तु स्थिति पर विश्वास करते हैं। फिर उनसे दूसरे की बातों का, मन का सामंजस्य बिठाते हैं। अन्त में किससे क्या कर्म हुआ कि वस्तु स्थिति उत्पन्न हो गई इसकी मीमांसा करते हैं। कभी कभी वे स्थिति प्रत्युत्पन्न(recreate) भी करते हैं। किसी की हत्या हो गई, कहीं चोरी हो गई, किसी की जान माल की हानि होगई। क्या गुप्तचर य अपराध विशेषज्ञ के मन की स्थिति भी उस ‘कल’ की वस्तु स्थिति को बदल नही रही है। चलिए एक जज मजिस्ट्रेट नामक संस्था को उस ‘कल’ की अवस्था पर ग़ौर करने के लिए स्थापित करते हैं जो अपराध करने य न करने का निर्णय करता है। क्या जज की मन: स्थिति सत्य को पहचानेगी।

दूसरा उदाहरण लेते हैं कि ‘सूर्य पूर्व में उगता है और पश्चिम में डूबता है’ यह तो मान्य सत्य था कल भी , आज भी है ,कल भी रहेगा।प्रथम दृष्टया यह तो नहीं बदलता।परन्तु पूर्व कौन सी दिशा है? पृथिवी पर अलग अलग बिन्दु पर घूमती पृथिवी की पूर्व दिशाएँ अंतरिक्ष में अगणित होंगी। यह दिशाएँ भी देश काल के सापेक्ष हैं। अतएव सत्य का पता संसारिक क्रियाओं व वस्तुओं से प्राप्त होना कठिन है। अंततोगत्वा यही निकल कर आता है कि ‘मन’ ही कुंजी है जो सत्य का पता दिशा देने में कुछ सीमा तक संभव हो सकती है। मनीषियों (मन को जानने वाले) ने मन को मुख्य माना जो सत्य की खोज भी कर सकता और झूठ / असत्य का साम्राज्य भी खड़ा कर सकता। है। मन की सीमा को बढ़ाना पड़ेगा यदि सत्य की खोज करना है। दिक्कत है मन की स्थिर अवस्था नहीं है, क्योंकि मन सर्वदा अस्थिर है। पल में तोला पल में माशा। जब कसौटी ही बदलती रहेगी तो सत्य की खोज कैसे होगी। मन स्थिर हो तभी कुछ संभव है। अब इसकी कला क्या है। कैसे स्थिर हो। मन को जाने समझें पहले तब स्थिर होने की बात करें। सारे योग शास्त्र इसी कला के विशद रूप हैं। चाहे कर्म योग हो, ज्ञानयोग हो , सांख्ययोग हो, राजयोग हो, हठयोग हो, कुण्डिलिनीयोग हो, योगिक ध्यान हो, वेदिक ध्यान हो, जहाँ मन स्थिर हुआ, समाधि तत्काल सिद्ध हुआ सत्य तभी उपलब्ध होगा। मन स्वत: हट कर अ-मन(No mind) और पूर्ण शान्ति ( complete peace) के रूप में सत्य का दिग्दर्शन कराता है। अत: सत्य तभी सम्भव है जब मन सोया रहे। मन जगा कि उसकी पृष्ठभूमि तैयार हुई और सत्य से दूर हुआ। मन की इसी शान्त और अ-मन(no mind) अवस्था को माण्डूक्य उपनिषद में तुरीय अवस्था का नाम दिया गया है। एक अवस्था जो सर्वोच्च है, सत्य है ,शान्त है,मन ,बुद्धि, अहंकार कुछ भी नहीं है क्योंकि आक्षेप , प्रक्षेप, करने वाला मन ही नही है। किसकी है यह अवस्था। यह चित्त की अवस्था है जिसकी गोद में मन बैठकर ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव में जन्म से मृत्यु तक झूला झुलाता है। चित्त के पीछे जो शक्ति है वह है चिति य चेतना (Consciousness/Awareness)। यह चेतना य चिति शक्ति ही है जो ब्रह्मांड में असंख्य चित्त रूप में प्रकट है और जो मन और मनोभाव के रूप में अनुभवजन्य है। यह अनुभवजन्य सत्य देश(Space), काल द्वारा सीमित प्रतीत होता है जैसे पूर्व में सूर्य उगने का सत्य य बीते हुए कल की सत्यता। जबकि सत्य तो केवल चिति शक्ति है जो सर्वत्र (All pervading),सर्व विद्यमान(Omnipresent),और सर्व शक्तिमान (Almighty)है।

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1 Comment


Tej Razdan
Tej Razdan
Apr 13, 2022

Truth so well defined!

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