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हिन्दू दर्शन और शिव दर्शन के प्रति बढ़ते क़दम

  • Vinai Srivastava
  • Mar 26, 2022
  • 3 min read

पिछली रचना में यह बात एक वैज्ञानिक विश्लेषण से उजागर हुई कि सृष्टि में होते हुए पल प्रति पल परिवर्तन पर ध्यान करें तो शिव और शिव शक्ति स्वयं एक निराकार,नित्य, अनन्त,अनादि रूप धारण कर कण कण में विद्यमान है ऐसा सिद्ध होजाता है यदि हम शिव को परिभाषित करते है कि यह प्रत्येक परिवर्तन की शक्ति है।

प्रस्तुत विषय ‘हिन्दू दर्शन और शिव दर्शन के प्रति बढ़ते क़दम ‘पर आने के पूर्व हम जानने की कोशिश करते है कि दर्शन क्या है। दर्शन(Philosophy) हम एक शास्त्र मानते है जो ज्ञान का एक विशिष्ट संग्रह कहलाता है। दर्शन एक क्रिया भी है जिसे हम अपनी इन्द्रियों के माध्यम से करते हैं। नेत्रयुक्त मनुष्य नेत्रों के माध्यम से करते है और नेत्रहीन स्पर्श,ध्वनि,य स्वाद से भी दर्शन कर सकते हैं।परन्तु नेत्र बन्द करके सभी मन की आँखों से भी दर्शन कर सकते हैं। इसी को हम साधारणतया ध्यान ( meditation) कह लेते हैं। नेत्र बन्द करके जहाँ हम स्थूल वस्तु का मानसिक दर्शन कर सकते हैं, वहीं हम निराकार शक्ति का भी अनुभव कर सकते है। सामान्यतः नेत्र बन्द करके हम सर्दी गर्मी, वायु, अग्नि,ध्वनि इत्यादि शक्तियों का अनुभव करते है और नेत्र खोल कर प्रकाश शक्ति की उपस्थिति में स्थूल वस्तु य उसकी गति का अनुभव करते हैं।

परन्तु इन्द्रिय जनित अनुभव एक सीमित क्षेत्र में ही सम्भव है।नेत्र अल्ट्रावायलेट किरण य इन्फ्रारेड किरणों को नहीं देख सकतेहैं, केवल बैंगनी,नील,नीला,हरा,पीला,नारंगी,और लाल (VIBGYOR) किरणों य सभी की सम्मिलित श्वेत किरण में वस्तुएँ देख सकते हैं। कान 20 आवृत्ति प्रति सेकन्ड से लेकर 20,000 आवृत्ति प्रति सेकन्ड की ध्वनि सुन सकते हैं। स्वाद व स्पर्श की अपनी अपनी सीमाएँ हैं।

मन की अनुभूति का क्षेत्र बहुत विशाल है। सभी इन्द्रियों से परे है। यह मन ही है जिसके द्वारा हम सबने शिव और शिव शक्ति की विशालता ,जोसृष्टि से परे अनादि,अनन्त,सत्य, नित्य,महाकाल,और निराकार है ,की अनुभूति की है। अत: यदि शिव दर्शन की तरफ अग्रसर हों तो वह मन के द्वारा ही सम्भव है। मन अनन्त है और अनन्त को ह्रदयंगम करने की क्षमता रखता है। मन की इस असीमित शक्ति को समझ कर ही किसी ने मन कोदेवता य ईश्वर की संज्ञा दे डाली। शायद आपने यह गीत सुना होगा जिसके शब्द निम्न है-

‘ मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय।

मन उजियारा जब जब फैले जग उजियारा होय।’

चान्डोक्य उपनिषद् मे ऋषि सनतकुमार और नारद ऋषि के आख्यान में परम ब्रह्म की उपासना हेतु सनतकुमार नारद को मन पर ध्यान करने कोकहते हैं। इसी प्रकार मन कीविशालता का वर्णन और उसके द्वारा प्राणी के जीवन में अर्ध चेतन मन, चेतन मनऔर परा चेतन मन का विशद वर्णन माण्डूक्य उपनिषद् में मिलता है।

शिव सृष्टि के कण कण में विद्यमान है। अत: सभी प्राणियों में विद्यमान है। उस तक पहुँचने के लिए मन को ही माध्यम बनाना पड़ेगा। परन्तु मन तो बहिर्मुखी है ; उसे तो बाह्य परिवेश से इन्द्रियों द्वारा प्राप्त सूचनाओं मे रुचि रहती है; इन्द्रियों से परे अपनी विशालता की अनुभूति में नहीं।

शिव अपने परिवर्तन शक्ति के द्वारा प्राणियों में विशिष्ट एवं विशद भाव जागृत करता है। मां बनने के साथ ममता,प्रेमी केसाथ प्रेम,भक्त के साथ भक्ति,वीर के साथ वीरता, करूणामय के साथ करुणा (compassion) इत्यादि। यदिआप ध्यान दें तो यह सभी भाव भी निराकार हैं, अनन्त है,अनादि है बिल्कुल शिव के गुणों के अनुरूप। प्राणी बदलते है यह भाव नहीं बदलते सृष्टि में निरन्तर और शाश्वत रहते हैं। इन भावों में पूर्णता से मन को केन्द्रित करके भी शिव दर्शन कीतरफ पग बढ़ाने कीविधा हिन्दू धर्म मे है जिसे साकार ब्रह्मोपसना कहा गया है। इसीलिए हिन्दू धर्म मे साकार शिव भक्ति, किसी देव की उपासना इत्यादि का समावेश है।प्रत्येक देव शक्ति मे भी शिव शक्ति अन्तर्निहित है।

प्रत्येक प्राणी मे उपस्थित शाश्वत शिव को ही वेदों ,पुराणों , हिन्दू धर्म ग्रन्थों मे आत्मा का नाम दिया गया है जो अजर,अमर,है। इसकी ओर उन्मुख होने अर्थात् मन को अन्तर्मुखी कर नियंत्रित करने और आत्मदर्शन हेतु साधना करने के अन्यान्य विधियों का वेदों व उपनिषदों मे वर्णन किया गया है। परन्तु कई सन्तों, ऋषियों और महात्माओं ने आत्मदर्शन हेतु प्रथक प्रथक पथ बताए है जिन्हें अलग धर्म का नाम दिया गया है जैसे जैन धर्म,बौद्ध धर्म,सिख धर्म आदि। तरह तरह की योग क्रियाएँ प्रचलित हैं हठ योग, अष्टांग योग,राजयोग,कर्म योग,मंत्र योग, कुन्डलिनी योग,सांख्य योग इत्यादि।

अतएव हिन्दू दर्शन य हिन्दू धर्म आत्म दर्शन हेतु जीवन जीने य जीवन को संचालित करने की एक वैज्ञानिक विधा है।

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