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मित्र

  • Vinai Srivastava
  • Mar 26, 2022
  • 1 min read

न वह कोई शत्रु होताहै,

न वह कोई धूर्त होता है।

ह्रदय से चाहने वाला ही,

सच्चा मित्र होताहै।

न वह कोई क़र्ज़ देताहै,

न सम्पत्ति ज़ब्त करताहै।

प्रेम से देके न कुछ माँगे ,

वह सच्चा मित्र होता है।

।।न वह कोई०।।

न किसी के रूप पर जाओ,

न उसके शान पर जाओ।

शान को दिखलाने वाला

, हीपक्का धूर्त होता है।

।। ०न वह कोई०।।

मित्र को कष्ट मे देखे,

मन मे गर वो हर्षाए।

दर्द जो दिल का न समझे,

वह केवल शत्रु होता है।

।। न वह कोई०।।

सूरज वायु औ’ धरती,

हमेशा देते रहते हैं।

बदले मे न कुछ माँगा,

हमेशा मित्र रहते हैं।

।।न वह कोई०।।

बिना माँगे ही जो समझे,

किसी कीबात जोदिलमे।

करे वहधर्म रहे जिसमें ,

शुभ मित्र का होताहै।

।।न वह कोई०।।

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