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एक ध्यान में दिखे एक स्वप्न का विवरण

  • Vinai Srivastava
  • Mar 26, 2022
  • 4 min read

Updated: Mar 17, 2023

कभी न ख़त्म होती हुई क़तारें दीख रही थीं। सभी आत्माएँ क़तार में अपनी बारी की प्रतीक्षा में थी। जिधर क़तार में सभी का मुख था मैं उधर ही चलता गया। एक विशाल रेलवे स्टेशन जैसी संरचना दिखी मै चल पड़ा उस भव्य इमारत की तरफ।मैने देखा कि एक अजब सी भाषा में इमारत का नाम लिखा था जिसे मैं शायद जानता था।इमारत का नाम था ‘जीवन प्रदाय स्थानक’। अजीब नाम है मैने मन ही मन सोचा। मैंने उसके क्रिया कलापों को जानने की इच्छा की। तुरंत मैने देखा कि प्रत्येक आत्मा पहले काउन्टर पर जाती है। काउन्टर पर लिखी थी कुछ इबारत। ध्यान दिया तो दिखा ‘पिछले जन्म की अन्तिम इच्छा’। काउन्टर पर बैठा व्यक्ति प्रत्येक आत्मा के सर की तरफ इशारा करता उसे अपने नेत्रों से आलोकित प्रकाश मे क्षणभर देखता और उसे दूसरे काउन्टर पर भेजता। दूसरे काउन्टर पर फिर कुछ लिखा दिखा। ध्यान दिया तो दिखा ‘ इच्छा और कर्म का सामंजस्य ‘। उस काउन्टर पर बैठा व्यक्ति प्रत्येक आत्मा के ह्रदय पर अपने नेत्रों से प्रकाश डालता और उसे तीसरे काउन्टर पर जाने का इशारा करता। तीसरे काउन्टर पर लिखा था ‘चौरासी लाख जीवन प्रदाय केन्द्र ‘। मै बहुत ध्यान से इस काउन्टर पर व्यस्त व्यक्तियों को देखने की चेष्टा कर रहा था। पूरे सोलह व्यक्ति काउन्टर पर कार्यरत दिखे। उनके नाम के बैज उनके ह्रदय पर लिखे दिखे। उनके नाम थे-

1)नाम,2) प्राण,3)इच्छा,4)आहार,5)मन,6)तेज़ 7)तप,8)ज्ञान,9)आहुति,10)विश्व,11)वरूण,12)थल,13)अग्नि,14)अंतरिक्ष ,15)पवन,16)इन्द्रिय।

सारे सोलह व्यक्ति आत्मा के पहुँचते ही उसे एक दिव्य प्रकाश से प्रकाशित कर अपनी ऊर्जा प्रदान करते य उससे स्वयं कुछ ऊर्जा ग्रहण कर उसको एक नया रूप, आकार प्रदान कर ‘जीवन प्रदाय मार्ग’ की तरफ इंगित करते और आत्मा एक नया स्वरूप लेकर गंतव्य स्थान कीतरफ रवाना हो जाती। गंतव्य स्थान का निर्णय ‘विश्व’ और ‘अंतरिक्ष’ नामक व्यक्ति कर रहे थे।

एक अलग कक्ष था। जिस पर लिखा था ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’। मै कक्ष मे झाँकने ही वाला था कि पता नहीं कहाँ से विशालकाय दो भृत्य समक्ष उपस्थित हो गए, गर्ज कर बोले,’’ तू यहाँ कहाँ विचर रहा है जा लाइन में सबसे पीछे खड़ा होजा।’’

मैने बड़ी विनम्रता सेहाथ जोड़ कर अनुनयपूर्वक कहा,’’ महाशय। मुझे क्षमा कीजिएगा। मै मुख्य कार्यकारी महोदय से कुछ जिज्ञासा का समाधान चाहता हूँ।’’

अचानक से एक गुरूगंभीर ध्वनि मुझे सुनाई पड़ी,’’आने दो। अभी इसे लाईन मे लगने का समय नहीं आया है। इसे वापस जाना है।’’

जैसे ही मैने कक्ष में प्रवेश किया, देखा कि एक दिव्य तेजस्वी पुरूष, जिस पर दृष्टि डालने मात्र से पूरे शरीर में एक सिहरन हो चली ने गहरी निगाहों से मुझे देखा। उसकी गुरू गंभीर वाणी कानों से टकराई,’’क्या जानना चाहते हो।क्यों इस क्षेत्र मे तुमने प्रवेश किया।’’

मैने उस दिव्य पुरूष को बहुत आदर से, ह्रदय से प्रणाम किया और कहा,’’भगवन्। मेरी धृष्टता क्षमा करें।मै नीचे के अंतरिक्ष क्षेत्र मे विचर रहा था। अचानक मेरी दृष्टि ऊपर के क्षेत्र पर उठ गई। देखा कि तरह तरह के रूप रंग आकार प्रकार की आत्माओं की एक लम्बी क़तार लगी है। उत्सुकतावश मैने ऊपर के क्षेत्र मे उड़ने की इच्छा की और धीरे धीरे यहाँ तक आ पंहुचा। यहाँ का विधान देखकर मैं चकित हूँ कि यह क्या हो रहा है। कैसी आत्माओं का कैसा जीवन प्रदाय स्थल है। यदि मै जानने का अधिकार रखता हूँ और आप बता सकते है तो बताएँ।मै आपका ऋणी होऊँगा।’’

वह एक चुम्बकीय मुस्कान बिखेरते हुए बोले,’’मै चित्रगुप्त हूँ। सभी आत्माओं को कर्मानुसार दूसरा जीवन प्रदान करने का प्रभु प्रदत्त अधिकार है मुझे। तुम्हारी इच्छा विचरण करते समय मुझ तक पहुँच गई थी। मेरे अनुमति पर तुम यहाँ तक पहुँच सके हो। यह जीवन प्रदाय स्थल का कार्य बहुत जटिल है और सरल भी। यहाँ पर प्रथम यह देखते हैं कि जीव ने मृत्यु के अन्तिम पल मे शरीर में स्थित मन में क्या इच्छा की तदुपरांत वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। आत्मा उसके बाद अपने सोलह अवएव के साथ यहाँ प्रवेश पातीहै। और नया जीवन लेकर अलग अलग योनि, अलग अलग विश्व, अलग अलग अंतरिक्ष मे जाती है।’’

मै कुछ असमंजस मे था,’’ परन्तु भगवन्। जीव द्वारा जीवन भर किए अपने तमाम कर्मों पर क्या उसका आगामी नवजीवन निर्भर नही करता।‘’

पुन: मुस्कुराते हुए चित्रगुप्त भगवान बोल पड़े,’’निर्भर करता है। पर सर्वप्रथम उसकी अन्तिम इच्छा सर्वोपरि होती है। यदि वह इच्छा किसी दूसरे के जीवन के उत्कर्ष से सम्बन्धित होती है य प्रभु चिन्तन य स्वात्म चिन्तन से सम्बन्धित होती है। उसे तत्काल इच्छानुसार जीवन प्रदान किया जाता है। परन्तु यदि वह केवल काम, क्रोध, मोह, लोभ,दंभ,ईर्ष्या के सीमित दायरे मे अन्तिम इच्छा करता है तो उसके कर्म का लेखा जोखा देखा जाता है। फिर उसे एेसा जीवन दिया जाता है कि जो उसके कर्मानुसार हो। यदि वह फिर भ्रमित रहे तो वह कर्म चक्र व इच्छा चक्र मे जन्म जन्मान्तर घूमता है। मृत्यु कब आएगी पता नही रहता इसलिए शास्त्रोक्त सामान्य सीख यही है कि जीव जीवन में पल प्रति पल कृतज्ञता और करूणा को स्थान दे व प्रभु का स्मरण करे। इन दोनो को साथ रखे जब भी कोई कर्म करे।’’

मै इस दुरूह कर्म विज्ञान का मर्म जानकर संतुष्ट व आनन्दित अनुभव कर रहा था। मैने भगवान श्री चित्रगुप्त की अभ्यर्थना की साष्टांग प्रणाम कर अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित किया।

वह कुछ कहते कि एक प्यारी सी रंगीन चिड़िया ने अपने मधुर ध्वनि से मेरी खिड़की पर कलरव करके मुझे ध्यान व स्वप्न से उठा दिया।

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