एक विलक्षण यंत्र
- Vinai Srivastava
- Mar 26, 2022
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एक यंत्र की कल्पना करें जिसके पाँच एन्टिना ,(संकेतग्राही तंत्र) हों। प्रत्येक एन्टिना मे अलग अलग स्पन्दन(vibration) वाले संकेत प्राप्त होते हों। प्रत्येक एन्टिना द्वारा ग्राह्य संकेत कभी दूसरे एन्टिना से प्राप्त न किए जा सके।इस यंत्र के चार स्पीकर हैं। एक स्पीकर से बिना आवाज़ के, बिना संकेत के समझा जा सके कि क्या व्यक्त किया जा रहा है। दूसरे स्पीकर को देखते ही समझा जा सके कि क्या व्यक्त किया जा रहा है। तीसरे स्पीकर से संकेत के माध्यम से समझा जा सके कि क्या व्यक्त किया जा रहा है। चौथे स्पीकर से आवाज़ (अक्षर,शब्द,वाक्य, भाषा) द्वारा समझा जा सके। क्या ऐसा विलक्षण यंत्र आपने कहीं देखा य सुना है? नहीं सुना , नही देखा। अरे जनाब! यही तो वह यंत्र है जिसे आप अपना शरीर य तन कहते है जिस पर आप फूले नहीं समाते है। पाँच एन्टिना हैं - आँख , नाक, कान, जीभ, त्वचा व त्वचा तन्तु( रोएँ )। यह सभी अलग स्पन्दन ग्रहण करते है। आँखें प्रकाश का स्पन्दन ग्रहण करती है; कान ध्वनि का स्पन्दन ग्रहण करते है;नाक गंध का स्पन्दन ग्रहण करती है;जिह्वा स्वाद की तरंग ग्रहण करती है और त्वचा व रोएँ स्पर्श केतरंग ग्रहण करते है। प्रत्येक एन्टिना दूसरे एन्टिना केतरंगो को नही ग्रहण कर सकता। इन सारी तरंगों के लिए पांच अलग अलग क़िस्म के आप्टिक फ़ाइबर पाईप य नाड़ियों का जाल शरीर में है। यह सारी तरंगें नाड़ियों द्वारा मेन फ़्रेम कम्प्यूटर यानि मस्तिष्क को जाती हैं। मेन फ़्रेम कम्प्यूटर का चालक है आपका शक्तिशाली मन जो आपके भीतर अदृश्य रूप से विराजमान है। जिस मन को धारण करने कारण आप मनुष्य य मानव य मनुज (मन के द्वारा उत्पन्न) कहे जाते है। मन का यंत्र है मस्तिष्क। मन ग्रहण किए स्पन्दनों से बाहरी जगत के आकार, प्रकार, रूप, रस,गंध,स्पर्श , स्वाद का अनुभव करता है। प्रत्येक अनुभव को स्मृति के रूप मे अपने स्मृति कोष (रिकार्ड/ अर्धचेतन मन) मे अंकित कर लेता है जिसे आवश्यकतानुसार भविष्य के अनुभवों से तुलना की जा सके य फिर उसे एक नए अनुभव के रूप मे स्वीकार किया जा सके। प्रत्येक अनुभव (experience) के साथ जुड़ती है अनुभूति ( feeling)।प्रत्येक अनुभूति पर संचालक मन का विशेषाधिकार होता जिसे वह तीन श्रेणी मे डालता है-
१- अच्छा लगा( likes)
२- नहीं अच्छा लगा (dislikes)य बुरा लगा
३- न अच्छा न बुरा लगा
जो अच्छा लगे उस अनुभव को मन कहेगा बार बार दोहराओ जब तक मन उसे दूसरी य तीसरी श्रेणी मे नही डाल देता य दूसरा अनुभव मन के ‘इच्छा’ के अनुसार सूझ ( बुद्धि द्वारा) नही जाता। बार बार दोहराने पर मनुष्य की प्रकृति (nature) य चरित्र का निर्माण होता है। मन के विस्तार के साथ विशिष्ट गुण , इच्छा और बुद्धि का निर्माण साथ साथ होने लगता है। उस ‘बुद्धि’ के द्वारा प्राप्त अनुभव ,जो मन और शरीर को स्वस्थता की ओर ले चले ‘विवेक’ कहते हैं। इस प्रकार मन के तीन आयाम इच्छा,बुद्धि और विवेक प्रकट होते है।
जो अच्छा न लगे वह अनुभव मनुष्य दोहराना नहीं चाहता। परन्तु यदि किसी कारणवश दोहराना पड़े तो मनुष्य मे क्रोध, क्षोभ,घृणा,निराशा जैसे ऋणात्मक भाव की उत्पत्ति होती जो कालान्तर मे शारीरिक रोग/अस्वस्थता कारण बनता है।
प्रत्येक अनुभव अच्छा य बुरा लगने के अतिरिक्त अन्यान्य भाव जिसमें प्रेम, दया , दम्भ य अहंकार आदि शामिल है प्रकट होने लगते है जिनका प्रसारण (expression ) भी शरीर से होता है जिसे व्यक्तिकरण भी कहते है।
अब रूख करते हैं शरीररूपी यंत्र के स्पीकर की तरफ अर्थात् व्यक्तिकरण (expression) की तरफ जिसके कारण मनुष्य को , व्यक्ति भी कहते है। यह व्यक्तिकरण चार प्रकार से होता है।
१-‘परा’ व्यक्तिकरण -
इस पद्धति मे मन अपने भाव, अनुभवों को बिना शारीरिक अंग का प्रयोग के किसी दूसरे शरीर के मन मे प्रत्यारोपित कर देता है। इस पद्धति से ऋषि अपने शिष्यों के मन मे बिना कुछ बोले ज्ञान स्थानांतरित करते थे। आज का विज्ञान भी अब इसे कुछ कुछ समझने लगा है और telepathy का नाम देने लगा है। इसमें भाषा ज्ञान की कोई आवश्यकता ही नही होती। भावानुभव तरंग य स्पन्दन रूप मे प्रसारित होते है। गुरू शिष्य के इस ज्ञान प्रसारण से ‘परम्परा’ शब्द विकास पाया।गुरू शिष्य परम्परा का भारतीय संस्कृति मे बहुत महत्व दिया गया।
२- पश्यन्ति व्यक्तिकरण
इस रूप में व्यक्ति के मन के भावानुभव मन, मस्तिष्क यंत्र का उपयोग कर तन मे ही स्थित कई माध्यम का चुनाव करता है जैसे आँखों से बहते आँसू , रोमांच इत्यादि य मन मे स्थित भाषा के अनुकूल अक्षर, शब्द, वाक्य का निर्धारण करने लगना य चयन करने लगना, पर व्यक्त नही हो पाना।
३- मध्यमा व्यक्तिकरण
इस रूप मे मन ,मस्तिष्क यंत्र का उपयोग कर बिना बोले शरीर के अंगों के द्वारा भावानुभव का व्यक्तिकरण करता है जैसे सर के,आँखों के , य हाथ पैरों के संकेतों द्वारा, लेखन द्वारा। विशेष ध्वनि वाले बाह्य यंत्र जैसे नगाड़ों , मोर्स कोड इत्यादि द्वारा य प्रकाश उत्पन्न करने वाले य्ंत्रो के सहारे।
४- बैखरी व्यक्तिकरण
इस रूप में मन एक विशेष भाषा मे ध्वनि के रूप मे शरीर के विशेषकर गले के व मुख के तमाम माँसपेशियों का उपयोग करते हुए अपने भावानुभव को प्रकट करता है।
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