यह ज़िन्दगी है य शिकायत का पुलिन्दा?
- Vinai Srivastava
- Mar 20, 2022
- 3 min read
Updated: Mar 26, 2022
क्या हमने कभी ध्यान दिया है कि हम पैदा होते ही ‘कहाँऊ,कहाऊं ‘ करके रोते हुए ,शिकायत करते हुए माँ के पेट से पृथक होते है कि ‘आखिर इतने मौज मे माँ के पेट में थे कहाँ और क्यों मुझे कोई बाहर निकाले’। यह तो कहिए साहब उस समय रोने के अलावा कोई भाषा जानते न थे वरना गालियाँ देतेही पेट से बाहर निकलते।
गालियाँ क्यों? चलिए यह भी बता दें कभी आपको ,बुरा न मानिए, ज़ोर की सुसु य पॉटी आई हो और अपने जिगरी दोस्त से कह के देखिए ‘जा तू मेरे बदले मे सुसु पॉटी हो ले’ वह जायगा भला! य दोस्त को पकौड़ी समोसा खाना हो और आप कहें’तू छोड़ मै प्राक्सी में तेरे बदले खा लेता हूँ ‘ भला वह मानेगा। यहाँ मै पेट मे था मुझे जो चाहिए माँ प्राक्सी मे मेरे बदले मे खाती पीती थी यहाँ तकसुसु पॉटी मेरे बदले जाती थी। यहाँ तक कि साँस भी मेरे बदले लेतीथी। सो शिकायत करना हम सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। जब तक भाषा नहीं सीखते हम सब रोना ही शिकायत का ज़रिया बनाए रहते है। हाँ कभी कभार शिकायत दूर होने पर मुस्करा भी देते रहे है य हँस भी देते रहे है य खिलखिला भी देते रहें हैं।परन्तु इसके बावजूद कभी हमने शिकायत का दामन नहीं छोड़ा। बड़े हुए तो इस मास्टर से शिकायत ,उस दोस्त से शिकायत, भाई बहन से शिकायत,पड़ोसी से शिकायत; और बड़े हुए तो बॉस से शिकायत, नौकरी से शिकायत, सहयोगी से शिकायत , बीबी से य मियाँ से शिकायत और कुछन मिला तो सरकार से शिकायत और तो और मौसम से शिकायत ,वातावरण से शिकायत। मरते समय भी शिकायत रहती है यह नहीं मिला, यह काम हाय नहीं कर पाए यानि ख़ुद से शिकायत। गरज यह कि सुबह बिस्तर से शिकायत करते उठते है और बिस्तर मे रात को जाने तक अनगिनत शिकायत के पुलिन्दों को अपने ज़ेहन मे य यों कहे अर्धचेतन मन मे ठूँस चुके होते है। प्रतिदिन की ठूँसा ठूँसी से हम अपने अर्धचेतन मन को सिर्फ़ शिकायत की कचरापेटी बना कर छोड़ते है। शिकायत की इस शराब मे इतना रस बस चुके होते है कि किसी की कोई तारीफ़ करने के पहले ज़रूर कहेंगे’ भाई साहब य बहन जी सब कुछ ठीक था परन्तु फ़लाँ फ़लाँ क्षेत्र मे यह कमी थी’। जैसे कही हम दावत उड़ा रहें हों और किसी डिश की तारीफ़ किसी ने कर दी तो हम फ़ौरन दिमाग दौड़ाएँगे कि क्या क्या ठीक नहीं था और शिकायत की बन्दूक़ से दो चार फ़ायर तो कर ही डालेंगे। यही तो हम ज़िन्दगी का नशा कहते है और दिन रात उसी मेडूबे ज़िन्दगी की नैया खेते चले जाते है। शिकायत के महाजाल मे उलझ कर चारों तरफ़ सिर्फ़ कमियाँ ही नज़र आती है और हम नकारात्मकता के भँवर जाल मे डूबे न जाने कितने शारीरिक व मानसिक रोग दोष के भंडार बन चुके होते है। कमियाँ खोजने मे माहिर होते है लेकिन दूसरों की। यदि हम कमियाँ अपनी खोजे उन्हें दूर करे और दूसरों के सकारात्मकता को ही देखे तो सम्भवत: हम अपना शारीरिक व मानसिक उत्थान तो करेंगे दूसरों मे भी सकारात्मकता का विकास कर सकेंगे। चारों तरफ़ शिकायत का कचरा साफ़ होगा तन व मन एक नई ऊर्जा से ओतप्रोत हो सकेगा।
यदि हम शिकायत करने के बजाय चुप रहे अपने चारों तरफ़ तारीफ़ की बात करें सोंचे कि मुझे क्यों इसमें ख़राबी य बुराई नज़र आई खोजे अच्छाई इसमें ज़रूर है। भगवान के इस सृष्टि मे अगणित असंख्य कारण मिल जाएँगे किआप ह्रदय से तारीफ़ करें और आपका मन गदगद हो जाय। सकारात्मक भाव से आपका मन भर जाय और तन स्वास्थ्य से परिपूर्ण हो जाय। परन्तु नहीं किसी से मिलने पर उसकी बुराइयों पर नज़र पहले जाएगी उसकी अच्छाइयाँ छिप जाएँगी हम अपने तन मन को नकारात्मक भाव से भरकर विकारों से ग्रसित हो जाएँगे।
क्यों न हम सभी एक प्रयोग करें। एक दिन मन मे निश्चय करें कि किसी की कोई बुराई न सुनेंगे न किसी को सुनाएँगे चाहे व्यक्ति हो य वातावरण। अपने अर्धचेतन मन को निर्देशित करे कि ज्यों कोई शिकायत का भाव किसी वस्तु, व्यक्ति , वातावरण के प्रति आए विचार की दिशा मोड़ दे और खोजे अच्छाई। भगवान ने कोई न कोई अच्छाई हर एक मे डाली है। अब जिसकी जीविका ही बुराई य कमियाँ खोज कर उन्हें दूर करके गुज़ारा करना हो जैसे आडिटर, हैकर्स, यंत्र सुधारक, डाक्टर इत्यादि। वे सब उनके जीविका क्षेत्र के बाहर लागू करने के प्रयोग की बात कर रहा हूँ।
राम सबका भला करें और भला क्या कह सकते है अन्त मे।