मित्र
- Vinai Srivastava
- Mar 20, 2022
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Updated: Mar 26, 2022
न वह कोई शत्रु होताहै,
न वह कोई धूर्त होता है।
ह्रदय से चाहने वाला ही,
सच्चा मित्र होताहै।
न वह कोई क़र्ज़ देताहै,
न सम्पत्ति ज़ब्त करताहै।
प्रेम से देके न कुछ माँगे ,
वह सच्चा मित्र होता है।
।।न वह कोई०।।
न किसी के रूप पर जाओ,
न उसके शान पर जाओ।
शान को दिखलाने वाला
, हीपक्का धूर्त होता है।
।। ०न वह कोई०।।
मित्र को कष्ट मे देखे,
मन मे गर वो हर्षाए।
दर्द जो दिल का न समझे,
वह केवल शत्रु होता है।
।। न वह कोई०।।
सूरज वायु औ’ धरती,
हमेशा देते रहते हैं।
बदले मे न कुछ माँगा,
हमेशा मित्र रहते हैं।
।।न वह कोई०।।
बिना माँगे ही जो समझे,
किसी कीबात जोदिलमे।
करे वहधर्म रहे जिसमें ,
शुभ मित्र का होताहै।
।।न वह कोई०।।