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चूसना

  • Vinai Srivastava
  • Mar 20, 2022
  • 3 min read

Updated: Mar 26, 2022

यह शब्द बड़ा गम्भीर भी है और हास्यास्पद भी। आज मै प्रात: भ्रमण को अपने आस्ट्रेलिया प्रवास के दौरान निकला। देखा एक पार्क मे कुछ वयोवृद्ध भारतीय इकट्ठा है ख़ुश है हंस रहे है। मैंने भी उत्सुकतावश उनका सामीप्य पाया। अभिवादन की औपचारिकता के बाद पता चला चूसना शब्द पर लोगों को हँसी आ रही थी। मै तो इस शब्द पर मानो अटक ही गया।

सोचने लगा चूसना तो जीवन की प्रक्रिया का मूल है। एक तुरंत जन्म लिया शिशु प्रथम क्रिया जो करता है वह है, माँ का स्तन चूसना। क्रिया आसान नही है। पहले वैकुअम (शून्य) का निर्माण करो मुँह मे फिर माँ का दूध जो प्रेम और ममता का पर्याय है स्वत: उस शून्य को भर देता है। फिर निर्मिति होती है शान्ति और तृप्ति की । दोनों माँ और शिशु एक निस्तब्ध आराम य ease मे होते है। कौन सिखाता है इस जटिल क्रिया को वह भी इस संसार मे पहला क़दम रखते ही। प्रकृति माँ ही न। रोना शिशु का एक dis-ease था। स्तन चूसना एक प्रेम व शान्ति का कारण माँ के लिए भी और शिशु के लिए भी। यहीं से सांसारिक eases और dis-eases का प्रथम परिचय मिलता है शिशु को। परन्तु चूसना उतना ही जितनी आवश्यक हो बस। कहीं यह आदत पड़ी नही कि बच्चे के लिए भी और माँ केलिए भी मुसीबत। यही से ज़रूरत और लालच मे फ़र्क़ करना भी प्रकृति माँ जो सर्वोच्च माँ है सिखाती है। परन्तु कोई कोई ही सीख पाता है इस गहरी सीख को। न सीखने वाले रावण, कुम्भकर्ण और सीखने वाले विभीषण बन जाते है, माँ चाहे सबकी एक ही क्यों न हो। कुछ माँएं पूतना कारूप धारण कर शिशु की इस कमजोरी का फ़ायदा उठाने की सोच लेती है। तब कान्हा को भगवान बनना ही प़ड़ता है चूसते चूसते प्राण निकालने वाला।

प्रकृति मे बीज धरती मे डालने केबाद धरती का चूसना बीज द्वारा शुरू हो जाता है। फिर बीज पौधा और बृक्ष बनने के बाद भी पल प्रति पल चूसना छोड़ता है क्या? बृक्ष से फल बनने केबाद चर जगत के प्राणी चूसने चखने आ जाते है। फिर उन प्राणियों को चूसने चखने वाले दूसरे प्राणी य जीव जन्तु आ जाते है। परन्तु चूसने की क्रिया प्रकृति की मुख्य क्रिया बन कर उभर कर निखर कर प्रकट होती है। वैसे मनुष्य धरती के अंचल से क्या क्या नही चूसता- जल, खनिज, तेल,प्राकृतिक गैस न जाने क्या क्या ज़रूरत से कहीं ज़्यादा। धरती माँ बैचेन है dis-ease है। माँ असहज है तो उसको असहज करने वाले सहज हो सकते है क्या? वह तमाम रूप से diseased रोगी तो होंगे ही। इसलिए मानवजीवन मे अनगिनत रोग फैल रहे है।

चूसने की क्रिया का एक साधारण विश्लेषण उपरोक्त किया गया कि एक शून्य य रिक्त स्थान बनाने की प्रथम आवश्यकता है चूसने मे अर्थात एक ऐसा क्षेत्र जहाँ वायु भी न हो आकाश/अंतरिक्ष का रूप हो तब ही प्रेम व ममता रूपी दुग्ध य किसी द्रव्य का प्रवाह सम्भव है। शून्य है परम ब्रह्म का प्रतीक। इस संसार के सारे कर्म किसी न किसी भाव से प्रेरित होते है - संसार भाव सागर य भव सागर जो ठहरा। प्रेम ममता एक उच्च भाव। यदि इस उच्च भाव मे समग्रता रहे तो परमात्मा रूपी शून्य मे स्वत: प्रवेश पा जाता है यह उच्च भाव। इसलिए प्रेम परमात्मा का पर्याय बन जाता है और मातृत्व परमात्म तत्व मे परिणत।

परन्तु संसार मे लोलुपता इतनी बढ़ चली है कि अमीर ग़रीब को और ग़रीब बनाने के लिए और खुद को और अमीर बनाने मे रत है। ग़रीब खुद को अमीर बनाने के लालच मे दूसरे ग़रीब को और दूसरे अमीर को भी चूसने का मौक़ा नही छोड़ता है । एक रस्साकसी चल रही है समाज मे क्योंकि हम भूल चुके है माँ प्रकृति कीमूल सिखावनी कि चूसना बस उतना जितनी ज़रूरत हो लालच नही वरना भोगो।

 
 
 
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