क्यों महादेव को सत्यम , शिवम् और सुंदरम शब्दों से विभूषित किया जाता है। - एक वैज्ञानिक विश्लेषण
- Vinai Srivastava
- Mar 20, 2022
- 2 min read
Updated: Mar 26, 2022
हिंदू दर्शन, एक परमाणु से लेकर ब्रह्मांड तक की वैज्ञानिक दृष्टिकोंण वाले ज्ञान से परिपूरित है। हिन्दू धर्म, किसी एक व्यक्ति ,समाज य संस्था द्वारा प्रतिपादित विचार व्यक्त नहीं करता वरन अन्यान्य ऋषियों द्वारा स्वयं अनुभवजनित ज्ञान का विशाल भंडार है जो वेदों,उपनिषदो, पुराणों व अन्य ग्रन्थों में सीधे रूप य परोक्ष रूप में उजागर है। हिन्दू प्रकृति य यों कहें ब्रह्मांड की अन्यान्य शक्तियों को और उनके द्वारा रचित
कृतियों को श्रद्धा एवं आदर से देखते हैं व पूजते हैं। प्रकृति की नैसर्गिक सुषमा,सूर्य,चन्द्र,वायु, बृक्ष,पौधे,ग्रह,नक्षत्र,अग्नि,पर्वत,मेघ,जल,नदी, सरोवर,समुद्र इत्यादि सभी को शक्ति का विभिन्न रूप में द्योतक मानते हैं,पूजा करते हैं।
इन शक्तियोंऔर अन्य प्राणियों द्वारा रचित कृतियों में समयानुसार परिवर्तन (transformation)होता रहता है, यह हम सभी जानते हैं। एक समय विशेष पर पूरे ब्रह्मांड की स्थिति अगले क्षण ही बदल जाती है और एक नई स्थिति, एक नई कृति उपस्थित हो जाती है। समय को हम ‘काल’ भी कहते हैं और काल ‘मृत्यु’ का भी सूचक है। पुरानी jस्थिति काल में समा जाती है, य काल कवलित हो जाती है। यदि काल को व्यक्ति के रूप में व्यक्त करें तो कह सकते हैं कि काल ने पुरानी स्थिति को खा लिया और एक नई स्थिति ने जन्म ले लिया है जिसे काल फिर खा जाएगा। यह क्रिया निरन्तर है,अनादि है और अनन्त है। नई स्थिति, नईकृति के उदय के पीछे जोशक्ति है उसे हिन्दू ब्रह्मा की शक्ति य रचनाकाyर की शक्ति (Creative Power) कहते हैं। स्थिति य कृति समय के कुछक्षण से लेकर लाखों वर्षों तक शनै: शेनै: बदल सकती है। स्थिति य कृति के इस शनै: शनै: परिवर्तन के पीछे की शक्ति को विष्णु की शक्ति (Sustainability Power)कहते है। परन्तु परिवर्तन की शक्ति(Power of Transformation or Destroying Power) कभी भी रुकती नहीं है,निरंतर कार्यरत रहती है। रचना के जन्म के साथ ही परिवर्तन की शक्ति परिवर्तन की दिशा निर्धारित कर देती है। इस दृष्टि से प्रत्येक रचना अनित्य है अर्थात् नित्य परिवर्तनीय है। यह ब्रह्मांड भी अनित्य है। काल के गर्त में समा रहाहै शनै: शनै: कबीर का यह दोहा इस स्थिति को सही रूप में दर्शाता है-
‘जगत चबेना काल का कुछ मुहं में कुछ गोद’
हिन्दू दर्शन इस ‘परिवर्तन शक्ति’ को ‘शिव’ के रूप में प्रतिपादित करता है और एक परमाणु से ब्रह्माण्ड तक को आच्छादित किए रहता है :उसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप में समाया रहता है। काल द्वारा प्रति पल परिवर्तन करता रहता है। प्रकट है वह शिव स्वयं काल से अछूता है। अन्य शब्दों में काल उस शिव में परिवर्तन नहीं कर सकता है। इसीलिए ‘शिव’को ‘महाकाल’ कहा गया है। वह नित्य है, अजन्मा, अनादि, अपरिवर्तनीय है। वह अपेक्षिक(relative)नहीं है, absolute है। कही से भी किसी के भी द्वारा दृष्टि गम्य य हृदयंगम होने पर वह वही दिखेगा य अनुभूति देगा। अनन्त की भी यही परि भाषा है। शिव इसलिए अनन्त है।
अत: वह शिव यदि अति सुन्दर है तो सर्वदा अति सुन्दर होगा क्योंकि शिव तो काल से परे है। ब्रह्मांड की सत्यता अपेक्षिक(relative) है यदि आज कुछ सत्य है तो कल वह सत्य नहीं होगा। परन्तु शिव सतत सत्य ही रहेगा। शिव’को ही सत्यम, और सुन्दरम कहा जा सकता है।