top of page

मनुष्य और व्यक्ति का अन्तर

  • Vinai Srivastava
  • Mar 20, 2022
  • 2 min read

Updated: Mar 26, 2022

क्या आप व्यक्ति हैं य मनुष्य है? आप कहेंगे क्या बेहूदा सवाल है? दोनो एक ही है। मैं ही मनुष्य हूँ मै ही व्यक्ति हूँ। मैं कहूँगा कि थोड़ा ध्यान दें। दोनो में बड़ा अन्तर है। मनुष्य य मानव य मनुज का अर्थ है मन से पैदा हुआ अर्थात् यदि मन न चाहे तो मनुष्य हो ही नही सकता। मनुष्य की सत्ता एक ‘अदृश्य शक्ति’ जिसे मन कहते हैं उस पर निर्भर है।

व्यक्ति तो वह हुआ जो स्वयं को शरीर (,जो एक ‘स्थूल’ दिखने वाले अंगो का समन्वय है) ,के माध्यम से व्यक्त कर सके। मनुष्य तब व्यक्ति बनता है जब उसका मन कुछ व्यक्त करना चाहे कि उसके मन मे क्या है। इसी को दूसरे शब्दों में यह कह सकते है शरीर एक फ़िल्टर है जिससे यदि मन झाँके तो व्यक्ति की उत्पत्ति होती है।मन की हर बात शरीर व्यक्त नही कर सकता। अब ‘मीठा क्या है ‘आप अपने शरीर के किसी अंग से व्यक्त नही कर सकते चाहे अनगिनत ग्रंथ लिख डाले , संसार की सारी शब्दावली बोल डाले। आप बस इतना कह सकते है मीठा खाओ खुद जान जाओ। मनुष्य बड़ा हो गया, व्यक्ति छोटा पड़ गया। मनुष्य को विशाल बनाती है उसकी अनुभूति जिसे व्यक्ति पूर्णरूपेण व्यक्त नहीं कर सकता। उसे मनुष्य अनुभव कर सकता है वह भीतर की बात है। मनुष्य शत प्रतिशत मनुष्य है जबकि व्यक्ति शत प्रतिशत व्यक्ति नही है।

दूसरी तरफ एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को अनुभव करा सकता है बिना व्यक्त किए। मतलब कि व्यक्ति बाइपास हो गया।

मनुष्य बड़ा है व्यक्ति छोटा है। मानवता बड़ी है व्यक्तित्व छोटा। मन अपने भाव, विचार शरीर द्वारा व्यक्त कर सकता है बोल कर, संकेतों द्वारा परन्तु आंतरिक अनुभूति कभी नही व्यक्त कर सकता। अनुभूति मन की अपनी धरोहर है वह स्मृति मे बनी रहती है जिससे इच्छा (desire)की उत्पत्ति होती है और मन उसी अनुभूति के लिए शरीर को दौड़ाता रहता है।

मन पाँचो इन्द्रियों (आँख , नाक,कान,जीभ, स्पर्श ) से मिले स्पन्दनो कोजोड़ कर अनुभूति पाता है जिसे व्यक्त नही किया जा सकता है। किसी कवि सही लिखा है-

‘तुझको देखा है मेरी नज़रों ने

तेरी तारीफ हो मगर कैसे।

न ज़ुबां को दिखाई देता है,

न निगाहों से बात होती है।।’

अनुभूति को पूर्ण रूप से व्यक्त नही किया जा सकता। ज़्यादा से ज़्यादा बस यही कहा जा सकता है -अच्छा लगा य -बहुत अच्छा लगा य फिर -नही अच्छा लगा य -बिल्कुल अच्छा नही लगा। यह निष्कर्ष अनुभव करने के बाद ही कह सकते है जैसे -

दृश्य अच्छा लगा

स्वाद अच्छा लगा य बहुत अच्छा लगा

संगीत अच्छा था

स्पर्श बहुत अच्छा लगा

गंध बहुत अच्छी लगी

इसी को दूसरी शब्दावली मे कह सकते है, इशारों मे कह सकते है। परन्तु सच्चाई यह है मन के इस भाव को पूरे तौर पर मन ही समझेगा। पूरे तौर पर व्यक्त कर पाना शरीर केलिए असम्भव है।

‘मै प्यार करता हूँ ‘ मुँह से कहना बहुत आसान है पर कितना ,और किस स्तर का प्यार है यह तो भविष्य के क्रियाकलापों पर निर्भर करेगा क्योंकि यह तो मन मे छुपा है। यही से विश्वास की उत्तपत्ति होती है।

अत: मेरा मानना है कि सच्चे मनुष्य का प्रतिबिम्ब सच्चा व्यक्ति हो सकता है। परन्तु बाहर से सच्चा दिखने वाला व्यक्ति अंतर्मन से सच्चा मनुष्य हो ज़रूरी नहीं है।

 
 
 
Post: Blog2 Post
  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn

©2022 by Vinai Kumar Srivastava. All rights reserved

bottom of page